Dangal star Suhani Bhatnagar died of which disease?
उनके पिता सुमित भटनागर ने कहा कि सुहानी को डर्मेटोमायोसाइटिस नाम की बीमारी थी.
सुहानी को सात फ़रवरी को दिल्ली के एम्स अस्पताल में भर्ती किया गया था, जहां उनका इलाज किया जा रहा था. मगर 16 फ़रवरी की बीमारी के कारण पैदा हुई समस्याओं के चलते उनकी जान चली गई.
डर्मेटोमायोसाइटिस बहुत ही विरल बीमारी है, जिसमें मांसपेशियों में सूजन हो जाती है और त्वचा में चकत्ते पड़ जाते हैं.
डॉक्टरों का कहना है कि सही समय पर इस बीमारी की पहचान हो जाए और विशेषज्ञों की निगरानी में इलाज करवाया जाए तो इससे होने वाली समस्याओं से राहत पाई जा सकती है.
हालांकि, कुछ मामलों में यह इतनी तेज़ी से शरीर के अहम अंगों को अपनी चपेट में ले सकती है, जिससे मरीज़ की जान भी जा सकती है.
क्या है डर्मेटोमायोसाइटिस ( What is dermatomyositis)
दिल्ली में डर्मेटोलॉजिस्ट डॉक्टर अंजू झा बताती हैं कि यह एक ऑटो इम्यून डिसऑर्डर है, जिसमें हमारे शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता अपने ही अंगों के ख़िलाफ़ काम करना शुरू कर देती है.
शरीर में कुछ ऐसी एंटीबॉडी बनने लगती हैं जो मांसपेशियों पर हमला करके उन्हें कमज़ोर करने लग जाती हैं. इससे मांसपेशियां कमज़ोर हो जाती हैं.
धीरे-धीरे यह समस्या अलग-अलग अंगों को चपेट में लेती है और उनमें इन्फ्लमेशन (सूजन) आ जाती है.
इसके लक्षणों के बारे में डॉ. अंजू बताती हैं, “हर मरीज़ को अलग-अलग तरह की दिक्कतें हो सकती हैं. कई बार त्वचा में चकत्ते पड़ जाते हैं. पलकों में सूजन होती है. कई बार सिर्फ़ कमज़ोरी महसूस होती है. जैसे कि मरीज़ को कंघी करने में हाथ उठाने में दिक्कत हो सकती है. कूल्हे के जोड़ों के आसपास दिक्कत हो तो उठने-बैठने में समस्या हो सकती है.”
शुरू में चेहरे या पलकों पर लाल या बैंगनी रंग के चकत्ते पड़ने या जोड़ों में दर्द की ही समस्या होती है. हालांकि, बाद में कई मरीज़ों को चलने-फिरने में भी दिक्कत होने लगती है और फेफड़ों की मांसपेशियां इसकी चपेट में आ जाएं तो सांस फूलने लगती है.
इसमें त्वचा और मांसपेशियों तक ख़ून ले जाने वाली रक्त वाहिकाओं (धमनियों) में सूजन आ जाती है. इससे त्वचा में बैंगनी या लाल रंग का चकत्ता बन सकता है, जिसमें दर्द या खुजली हो सकती है.
कई बार कोहनी, घुटनों या पांव की उंगलियों में भी चकत्ते या बैंगनी दाग दिख सकते हैं. नाखून के आसपास सूजन आ सकती है, जोड़ों में जकड़न हो सकती है, त्वचा रूखी हो सकती है और बाल पतले हो सकते हैं.
समस्या बढ़ जाए तो निगलने में समस्या हो सकती है, आवाज़ बदल सकती है और थकान, बुखार या वज़न कम होने जैसी दिक्कतों का सामना भी करना पड़ सकता है.
कैसे की जाती है पहचान ( How is identification done)
शुरुआती लक्षण दिखने पर मरीज़ की मेडिकल हिस्ट्री और शारीरिक जांच करके पता लगाया जा सकता है कि इन लक्षणों की वजह क्या है.
डॉक्टर अंजू झा बताती हैं कि पुष्टि करने के लिए ब्लड टेस्ट, इलेक्ट्रोमाइलोग्राम (ईएमजी) और बायोप्सी की मदद ली जाती है.
डॉक्टर अंजू झा बताती हैं कि डर्मेटोमायोसाइटिस पांच से 14 साल के बच्चों या फिर 40 से अधिक उम्र के लोगों में ज़्यादा होता है.
उनका कहना है कि बच्चों में कई बार यह तेज़ी से बढ़ता है और जब तक समझ आता है, इससे बहुत नुक़सान हो चुका होता है.
उनका मानना है कि हो सकता है अभिनेत्री सुहानी के साथ भी ऐसा ही हुआ हो. कई बार ऐसा भी होता है कि शरीर को नुक़सान पहुंचा रहे इम्यून सिस्टम को काबू में रखने के लिए इम्यूनोसप्रसेंट (प्रतिरोधक क्षमता को कमज़ोर करने वाली दवा) दिए जाते हैं, जिससे मरीज़ को बाक़ी बीमारियां होने का ख़तरा भी बढ़ जाता है.
सही ढंग से इलाज ज़रूरी ( proper treatment is necessary)
जैसे कि मांसपेशियों में आई अकड़न हो तो फ़िज़िकल थेरेपी दी जाती है. त्वचा में रैश (चकत्ते) होने से रोकने के लिए दवाएं दी जाती हैं. इम्यूनिटी यानी प्रतिरोधक क्षमता को दबाने वाली दवाएं भी दी जाती हैं.
डॉक्टर अंजू झा कहती है, “न सिर्फ़ डर्मेटोमायोसाइटिस बल्कि किसी भी तरह का ऑटो इम्यून डिसॉर्डर हो तो आपको लगातार दवा लेनी होती है. ऐसा नहीं होता है कि किसी एक दवा से तुरंत ठीक हो जाएं.”
वह कहती हैं, “पहले अपने लक्षण ठीक से दिखाएं. जब पता चल जाए तो सही से इलाज करवाएं. कई बार स्टेरॉयड भी दिए जाते हैं. लोगों में कई गलतफ़हमियां हैं कि स्टेरॉयड नहीं लेने हैं. मगर सही डॉक्टर, जैसे कि डर्मेटोलॉजिस्ट या रूमेटोलॉजिस्ट के पास पहुंचकर उनकी सलाह से सही इलाज करवाना ज़रूरी है.”