किराएदारों ने मस्जिद के अंदर फेंकीं खंडित मूर्तियां, ज्ञानवापी विवाद में मुस्लिम पक्ष का नया पैंतरा

Tenants threw broken idols inside the mosque, new maneuver by Muslim side in Gyanvapi dispute

उत्तर प्रदेश के वाराणसी में स्थित ज्ञानवापी मस्जिद परिसर में हुए सर्वेक्षण की 839 पन्नों की वैज्ञानिक रिपोर्ट भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) की टीम ने सौंप दी है। इस रिपोर्ट में दावा किया गया है कि विवादित मस्जिद परिसर के अंदर हिन्दू देवी-देवताओं की खंडित मूर्तियों के अलावा कई प्रतीक चिह्न मिले हैं, जो इस बात की ओर इशारा करते हैं कि वहां मस्जिद से पहले मंदिर की संरचना रही होगी।

इस रिपोर्ट पर मस्जिद के संरक्षक अंजुमन इंतेज़ामिया मसाजिद (AIM) ने आशंका जताते हुए कहा है कि ज्ञानवापी परिसर के भीतर मलबे के एक टीले से मिली मूर्तियों के टुकड़े वहां किराए पर अपनी दुकान चला रहे मूर्तिकारों द्वारा फेंके गए होंगे, जो इसे ध्वस्त करने से पहले एक इमारत में किराए की दुकानों से अपने मूर्ति का व्यापार करते थे।

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद के वकील अखलाक अहमद ने टीओआई से कहा कि विवादित स्थल पर मस्जिद से पहले मंदिर होने की हिन्दू पक्ष की दलील किसी नई खोज पर आधारित नहीं हैं। उन्होंने कहा, “इस बात की ‘प्रबल संभावना’ है कि पांच से छह मूर्तिकारों, जिन्हें एआईएम ने छत्ताद्वार में दुकानें किराए पर दी थीं, ने मस्जिद के दक्षिणी हिस्से में क्षतिग्रस्त मूर्तियों और कचरे को 1993 से पहले ही फेंक दिया होगा। 1993 में इसे लोहे की ग्रिल से ढक दिया गया था। इसलिए संभव है कि एएसआई टीम ने अपने सर्वेक्षण के दौरान मलबा हटाते समय उन्हीं मूर्तियों को बरामद किया हो।”

अहमद ने कहा, “हमने रिपोर्ट नहीं देखी है, लेकिन सर्वेक्षण के दौरान मलबे से मूर्तियों की बरामदगी के संबंध में वादी पक्ष के दावे में कुछ भी नया नहीं लगता है। हम रिपोर्ट का अध्ययन करने के बाद विशिष्ट टिप्पणी करेंगे। फिलहाल, दावे बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे मई 2022 में कोर्ट कमिश्नर के सर्वे में बताए गए थे।”

मुस्लिम पक्ष के विवाद पर हिंदू वादी के वकील विष्णु शंकर जैन ने कहा कि इस तरह के तर्क का कोई आधार नहीं है। जैन ने कहा कि एएसआई रिपोर्ट यह स्पष्ट करती है कि काशी विश्वनाथ मंदिर के बगल में स्थित मस्जिद 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल के दौरान एक भव्य हिन्दू मंदिर के ध्वस्त होने के बाद अवशेषों पर बनाई गई थी। उन्होंने यह भी दावा किया कि सर्वेक्षण रिपोर्ट में उस स्थान पर मंदिर के अस्तित्व के पर्याप्त सबूत हैं, जहां अब मस्जिद है।

अंजुमन इंतेजामिया मसाजिद समिति के सचिव मोहम्मद यासीन ने कहा, “यह सिर्फ एक रिपोर्ट है, कोई फैसला नहीं। कई तरह की रिपोर्ट हैं। यह इस मुद्दे पर अंतिम शब्द नहीं है।” उन्होंने कहा कि उच्चतम न्यायालय जब पूजा स्थल (विशेष प्रावधान) अधिनियम, 1991 से संबंधित मामले की सुनवाई करेगा तो वे (समिति) अपने विचार प्रस्तुत करेंगे। अधिनियम कहता है कि अयोध्या में राम मंदिर को छोड़कर किसी भी स्थान का ‘धार्मिक चरित्र’ 15 अगस्त, 1947 को मौजूद स्थान से नहीं बदला जा सकता है।

हिंदू याचिकाकर्ताओं में से एक राखी सिंह का प्रतिनिधित्व करने वाले वकील मदन मोहन यादव ने कहा कि सर्वेक्षण के दौरान 32 स्थानों पर ऐसे साक्ष्य मिले हैं जो बताते हैं कि वहां मंदिर था। जैन ने दावा किया कि सर्वेक्षण के दौरान दो तहखानों में हिंदू देवताओं की मूर्तियों के मलबे पाए गए हैं और ज्ञानवापी मस्जिद के निर्माण में स्तंभों (खंभों) सहित पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों का इस्तेमाल किया गया था।

उन्होंने दावा किया कि मंदिर को गिराने का आदेश और तारीख पत्थर पर फारसी भाषा में अंकित है। उन्होंने कहा, ‘महामुक्ति’ लिखा हुआ एक पत्थर भी मिला। जैन ने यह भी दावा किया कि मस्जिद के पीछे की पश्चिमी दीवार पहले से मौजूद मंदिर की दीवार थी। उन्होंने कहा कि दीवार पर “घंटी” और “स्वस्तिक” चिन्ह उकेरे गए थे। उन्होंने कहा कि सर्वेक्षण रिपोर्ट से पता चला है कि तहखाने की छत नागर शैली के मंदिरों के स्तंभों पर टिकी हुई थी।

जैन ने कहा, “इस सबूत से पता चलता है कि जब औरंगजेब ने 17वीं सदी में आदिविश्वेश्वर मंदिर को नष्ट किया था, तो वहां पहले से ही एक बड़ा मंदिर मौजूद था।” उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के आधार पर वह 6 फरवरी को अगली सुनवाई में कोर्ट के सामने सबूत पेश करेंगे.

इससे पहले गुरुवार को, हिंदू और मुस्लिम दोनों पक्षों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुल 11 लोगों ने काशी विश्वनाथ मंदिर से सटे ज्ञानवापी परिसर में एएसआई जांच रिपोर्ट की मांग करते हुए अदालत का दरवाजा खटखटाया। जांच रिपोर्ट में कहा गया है, “मौजूदा संरचना में इस्तेमाल किए गए स्तंभ और दीवार के समर्थन व्यवस्थित और वैज्ञानिक जांच के अधीन थे।” मस्जिद के विस्तार और निर्माण के लिए, स्तंभों सहित पहले से मौजूद मंदिर के कुछ हिस्सों को मामूली संशोधनों के साथ पुन: उपयोग किया गया। “गलियारे में स्तंभों की सूक्ष्म जांच से पता चलता है कि वे मूल रूप से मौजूदा हिंदू मंदिर का हिस्सा थे।”