देहरादून। उत्तराखंड में विपक्षी पार्टियों के नेताओं को लगता है ज्यादा मेहनत करने की जरुरत नहीं है। सरकार के अफसर ही खुद विरोधी का काम बड़ी मेहनत से कर रहे हैं। जी हां, उत्तराखंड पेयजल निगम इसका नायाब उदाहरण है। पेयजल निगम के एक सरकारी व्हाट्सऐप ग्रुप पर एक अधिकारी ने एक ऐसा वीडियो अपलोड किया है, जो कर्मचारी आचरण एवं सेवा नियमावली के खिलाफ है। अधिकारियों के इस तरह के कृत्य से सरकार की छवि खराब ही नहीं हो रही है, बल्कि जनता के बीच भी गलत संदेश जा रहा है।
यूं तो हमेशा सुर्खियों में रहने वाला पेयजल निगम एक बार फिर चर्चाओं में है। इस बार वेतन, पेंशन और घपले-घोटालों के लिए नहीं, बल्कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के एक पुराने वीडियो को सरकारी ग्रुप में शेयर करने को लेकर है।
बता दें कि कुछ दिन पहले पेयजल निगम के एक सरकारी व्हाट्सऐप ग्रुप पर एक अधिकारी ने प्रधानमंत्री मोदी का एक वीडियो शेयर किया है, जिसमें साफ तौर पर लिखा है कि ‘‘पेट्रोल 90 रुपये पार, क्या अब भी चाहिए मोदी सरकार”। उसमें पीएम को रोते हुए दिखाया गया है। इसे सीधे तौर पर सरकार की छवि जुड़ी है, जो दुष्प्रचार की नीयत से शेयर करना बताया जा रहा है।
सवाल यह है कि आखिर नीति-नियमावली से बंधा एक अधिकारी कैसे प्रधानमंत्री के खिलाफ दुष्प्रचार कर सकता है। यह सरकार की अफसरों पर ढ़ीली पकड़ और अराजकता को भी दर्शाता है। दिलचस्प बात यह है कि यह दुष्प्रचार उस समय हो रहा है, जब त्रिवेंद्र सरकार को ई-गवर्नेंस का पुरस्कार मिला है। सरकार का यह कैसा गवर्नेंस है, जिसके अपने ही अधिकारी बेलगाम हैं।
बताया जा रहा है कि जिस अधिकारी ने प्रधानमंत्री का दुष्प्रचार का यह वीडियो सरकारी व्हट्सऐप ग्रुप पर शेयर किया है वह खुद पेयजल निगम में महाप्रबंधक (प्रशासन) जैसे अहम ओहदे पर हैं। जिनके जिम्मे निगम की सारी प्रशासनिक व्यवस्थाएं है, वही सरकार के विरोध में शोसल मीडिया के जरिये दुष्प्रचार कर रहे हैं, यह बिडंबना नहीं तो और क्या है? सरकार के लिए भी यह चिंता का विषय है।
एक ओर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत कड़ी मेहनत करके लगातार सरकार की छवि के साथ प्रशासनिक व्यवस्थाओं को सुधारने में जुटे हैं। मुख्यमंत्री रावत आम जनता के बीच जाकर जन समस्याओं को सुन ही नहीं रहे हैं, बल्कि उन्हें दूर करने का भी भरसक प्रयास कर रहे हैं। वहीं दूसरी ओर उनके मातहत अधिकारी उनकी मेहनत पर पानी फेरने का कोई कोर कसर नहीं छोड़ रहे हैं।
दीगर पहलू यह है कि विरोधाभाषी प्रचार सामाग्री को सरकारी व्हाट्सऐप ग्रुपों में जो अधिकारी प्रचारित और प्रसारति कर रहे हैं, क्या वह निजी ग्रुपों में यह कार्य नहीं कर रहे होंगे, यह हो नहीं सकता। ऐसे मामलों का क्या सरकार को संज्ञान नहीं लेना चाहिए। यदि इस तरह के कुप्रचार करने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई नहीं हुई, तो आने वाले समय में राज्य सरकार को इसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है।
इससे भी अहम सवाल यह है कि जिस सरकारी व्हाट्सऐप ग्रुप पर प्रधानमंत्री का दुष्प्रचार हो रहा है, उसमें कई बड़े अधिकारी भी जुड़े होने बताए जा रहे हैं, लेकिन मामले का संज्ञान लेकर कार्रवाई के बजाय इस वरिष्ठ अधिकारी भी वीडियो देखकर मौन साध गए? क्या उत्तराखंड में यही है मजबूत सरकार का मजबूत प्रशासनिक तंत्र, जो सरकार की जन कल्याणकारी योजनाओं के प्रचार-प्रसार के बजाय सोशल मीडिया पर सरकार का दुष्प्रचार कर रहे हैं।
जनता के बीच यह भी सवाल उठ खड़े हो रहे हैं कि क्या सरकारी व्हाट्सऐप ग्रुप सरकार के दुष्प्रचार के लिए बनाए गए हैं? क्या ऐसी अराजकता पर कार्रवाई नहीं होनी चाहिए? सौ बात की एक बात यह है कि जिस राज्य में अफसरशाही अराजक तरीके से काम करने पर आमादा हो, तो परिणाम ऐसे ही आएंगे। यह बेहद चिंता का भी विषय नहीं है, यह सरकार की कार्यप्रणाली पर बि प्रश्न चिन्ह लगाता है।
दरअसल, मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत लगातार प्रशासनिक अराजकता को सुधारने में जूटे हैं। वह अब तक कई विभागों के बड़े अधिकारियों समेत आईएएस तक को नाप चुके हैं। उनके कई कड़े निर्णयों से व्यवस्थाओं में सुधार भी देखने को मिला है। अब देखना यह होगा कि इस मामले में मुख्यमंत्री क्या निर्णय लेते हैं। क्योंकि यह मामला सीधे प्रधानमंत्री की छवि से जुड़ा हुआ है।
“प्रधानमंत्री के खिलाफ सरकारी व्हाट्सएप ग्रुप पर दुष्प्रचार करना दुर्भाग्यपूर्ण है। सम्बन्धित अधिकारियों द्वारा इस प्रकरण को संज्ञान में लेकर तत्काल विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए। वह इस सम्बंध में मुख्यमंत्री से बात करेंगे। गणेश जोशी, विधायक, मसूरी”।
“मामला संज्ञान में नहीं है। पेयजल निगम में कई सरकारी व्हाट्सएप ग्रुप हैं। किस ग्रुप में वीडियो शेयर किया गया है, उसकी जांच कर तदनुसार कार्रवाई अमल में लाये जाएगी। एसके पन्त, प्रबन्ध निदेशक, उत्तराखंड पेयजल निगम”।
“सरकारी कार्मिकों द्वारा प्रधानमंत्री का दुष्प्रचार करना सेवा नियमावली का सीधा उल्लंघन है। इस कृत्य को अंजाम देने वाले अधिकारी के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई होनी चाहिए, ताकि दूसरों को सबक मिल सके। सरकार की छवि धूमिल करने वाले ऐसे अधिकारियों की जांच कर मामले में जल्द कार्रवाई की जाए, अन्यथा संगठन को ऐसे अधिकारियों के खिलाफ धरना-प्रदर्शन करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। रतन सिंह चौहान, जिला महामंत्री, भाजपा, देहरादून”।
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