

मृदा में विघटन न होने के कारण वर्तमान में ई-वेस्ट (बेकार कंप्यूटर, लैपटॉप, मोबाइल, टीवी, रेडियो आदि) का उपयोग रिसाइकिल से दोयम दर्जे का प्लास्टिक बनाने में किया जाता है।
इससे सस्ते एवं घटिया मानकों के घरेलू एवं इलेक्ट्रॉनिक उत्पाद बनाए जाते हैं। ई-वेस्ट की रिसाइकिलिंग से उत्सर्जित होने वाली विषाक्त गैसें पर्यावरण को प्रदूषित करती हैं।
वैश्विक समस्या बन चुके ई-वेस्ट के निस्तारण की वैज्ञानिकों ने अब तकनीक खोज ली है। मिट्टी में इसका विघटन होता है और जलाने पर इससे निकलने वाली विषाक्त गैसें पर्यावरण सहित मानव जीवन को हानि पहुंचाती हैं।
लेकिन, अब जीबी पंत कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने 18 सालों की अथक मेहनत के बाद ई-वेस्ट के निस्तारण की बायोडिग्रेडेशन (जैव विघटन) तकनीक खोज निकाली है। गत मंगलवार को इसका पेटेंट भी इन वैज्ञानिकों को हासिल हो गया है। इससे विश्वविद्यालय में खुशी का माहौल है।
ई-वेस्ट को जमा करके रखना तथा उनका रिसाइकिलिंग से दैनिक जीवन में उपयोगी वस्तुओं के निर्माण के लिए उत्पादों में परिवर्तित करना पर्यावरण हितैषी नहीं होता है।
समस्या के समाधान के लिए पंतनगर विवि के वैज्ञानिक बीते 18 वर्षों से विभिन्न प्लास्टिक पदार्थों के बैक्टीरिया द्वारा जैविक विघटन की विधि एवं तकनीक विकसित करने में लगे थे।
भारत सरकार ने दिया पेटेंट
इस संबंध में विश्वविद्यालय के सीबीएसएच कॉलेज में सूक्ष्म जीव विज्ञान की पूर्व विभागाध्यक्ष व सेवानिवृत्त प्राध्यापिका डॉ. रीता गोयल, रसायन विज्ञान विभाग के प्राध्यापक डॉ. एमजीएच जैदी व उनके सहयोगी ने बैक्टीरिया समूहों द्वारा जैव विघटन विधि की तकनीक विकसित भारत सरकार को पेटेंट के लिए भेजा था।
यह इंडियन पेटेंट जनरल में 31 जुलाई 2020 को प्रकाशित हुआ था। इस पेटेंट में छह क्लेम व सात तकनीकी चित्रों का समावेश है, जो विकसित तकनीक का महत्व एवं वर्तमान परिवेश में ई-वेस्ट की बढ़ती समस्या के निराकरण में सकारात्मक प्रयास को दर्शाता है।
इसका पेटेंट मंगलवार चार अगस्त को हासिल हो गया। कुलपति डॉ. तेज प्रताप व निदेशक शोध डॉ. एएस नैन ने पेटेंट हासिल होने पर वैज्ञानिकों की टीम को बधाई दी है।
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