

नेत्रहीन लोगों की जिंदगी में रोशनी लाने के काम में लगे संस्थान के आई बैंक ने लैमेलर केराटोप्लास्टी विधि से कॉर्निया ट्रांसप्लांट के काम को सफलता पूर्वक अंजाम दिया है। इस विधि से एक आई डोनर से चार लोगों की जिंदगी में उजाला हो जाता है। इसके बाद एम्स ऋषिकेश इस उपलब्धि को हासिल करने वाला उत्तराखंड का पहला और अकेला सरकारी संस्थान बन गया है।
एम्स ऋषिकेश में पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप के तहत 21 अगस्त 2019 को हंस फाउंडेशन और एलवी प्रसाद आई हॉस्पिटल, हैदराबाद की सहायता से आई बैंक की स्थापना की गई थी। तब से लेकर अब तक बैंक को विभिन्न स्वैच्छिक आई डोनर द्वारा कुल 170 कॉर्निया प्राप्त हुई हैं।
बीच में कोरोनाकाल शुरू हो जाने के बाद अब तक आई बैंक मात्र नौ माह ही काम कर पाया है। इस अंतराल में भी आई बैंक ने कुल 87 कॉर्निया ट्रांसप्लांट करने में सफलता हासिल की है। इतना ही नहीं कोरोनाकाल के दौरान ही आई बैंक में उपलब्ध कॉर्निया की मदद से 11 लोगों को कॉर्निया प्रत्यारोपण कर उनकी जिंदगी रोशन की गई, जबकि 24 कॉर्नियां दूसरे अस्पतालों को दी गईं।
क्या होता है लैमेलर केराटोप्लास्टी:
कॉर्निया प्रत्यारोपण, जिसे कॉर्नियल ग्राफ्टिंग के रूप में भी जाना जाता है, एक सर्जिकल प्रक्रिया है। जिसमें क्षतिग्रस्त या रोगग्रस्त कॉर्निया को कॉर्नियल टिशू (ग्राफ्ट) द्वारा बदल दिया जाता है। जब पूरे कॉर्निया को बदल दिया जाता है, तो इसे टोटल केराटोप्लास्टी के रूप में जाना जाता है और जब कॉर्निया के केवल हिस्से को बदल दिया जाता है, तो इसे लैमेलर केराटोप्लास्टी के रूप में जाना जाता है।
नेत्रदान के बाद डोनर का चेहरा नहीं होता विकृत
आम धारणा है कि मरने के बाद जब व्यक्ति की आंखें निकाल दी जाती हैं तो उसका चेहरा विकृत हो जाता है। यह भी कारण है कि लोग आंखें दान करने में कतराते हैं। जबकि उनके परिजन भी नहीं चाहते की उन्हें क्षत-विक्षत शव देखने को मिले।
एम्स आई बैंक की स्वास्थ्य निदेशक एवं एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. नीती गुप्ता बताती हैं कि पहले आंख दान करने वाले व्यक्ति की दोनों आई बॉल निकाल दी जाती थी। लेकिन इस विधि की खास बात यह है कि इसमें पूरी आंख न निकालकर सिर्फ कॉर्निया निकाला जाता है। आई बैंक स्टाफ कॉर्निया प्राप्त करने के बाद उसमें कृत्रिम शैल लगा देते हैं। इसके बाद डोनर की आंखें उसी रूप में दिखाई देती हैं, जैसे पहले थी।
विभिन्न क्षेत्रों की तरह मेडिकल की दुनिया में भी रोज नए बदलाव हो रहे हैं। लैमेलर केराटोप्लास्टी भी इनमें से एक है। देश में प्रतिवर्ष करीब दो लाख कॉर्निया की जरूरत है, लेकिन मात्र 60 हजार के करीब ही मिल पाती हैं। इस तरह देखें तो यह कुल जरूतर का मात्र एक चौथाई ही है। जबकि दूसरे दूसरे देशों में कॉर्निया डोनेशन का प्रतिशत भारत की तुलना में कहीं बेहतर है। लेकिन नई तकनीक आने के बाद हमें विश्वास है कि लोग स्वैच्छिक नेत्र दान के लिए आगे आएंगे।
– डॉ. संजीव मित्तल, प्रोफेसर एवं एचओडी नेत्र विभाग, एम्स ऋषिकेश
संस्थान के आई बैंक ने बहुत कम समय में बड़ी उपलब्धियां हासिल की हैं। हम यहां नवीनतम तकनीक का उपयोग कर रहे हैं। आई बैंक की मदद से अधिक से अधिक लोगों की जिंदगी में रोशनी आए, इसके लिए समाज में बड़े स्तर पर जागरुकता लाए जाने की जरूरत है। जब तक लोग स्वैच्छिक रूप से नेत्र दान के लिए आगे नहीं आएंगे, तब तक बड़े बदलाव की उम्मीद कम ही है।
– प्रो. रविकांत, निदेशक, एम्स ऋषिकेश
I really appreciate this post. I¦ve been looking all over for this! Thank goodness I found it on Bing. You’ve made my day! Thank you again
Thank you for the auspicious writeup. It in reality used to be a enjoyment account it. Glance advanced to far added agreeable from you! However, how could we keep up a correspondence?